INS अरिदमन: भारतीय नौसेना की समुद्री सुरक्षा में नया आयाम

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हिंद महासागर में बढ़ती सैन्य प्रतिस्पर्धा और चीन-पाकिस्तान के गठजोड़ को देखते हुए भारत अपनी समुद्री रक्षा क्षमताओं को मजबूत करने की दिशा में लगातार काम कर रहा है। इसी कड़ी में, भारत की अत्याधुनिक परमाणु शक्ति से संचालित पनडुब्बी INS अरिदमन को इस साल के अंत तक नौसेना में शामिल किए जाने की संभावना है। यह कदम भारत की समुद्री सुरक्षा को एक नई मजबूती देगा।

तीन साल के सघन परीक्षण

INS अरिदमन न्यूक्लियर-पावर्ड बैलिस्टिक मिसाइल पनडुब्बी (SSBN) है, जिसे भारतीय नौसेना की अरिहंत-क्लास पनडुब्बियों के तहत विकसित किया गया है। बीते तीन वर्षों में इसका समुद्री परीक्षण किया गया, जिसमें इसकी गुप्त संचालन क्षमता, परमाणु सुरक्षा और मिसाइल तैनाती प्रणाली का गहन मूल्यांकन किया गया। ट्रायल के दौरान पनडुब्बी के प्रोपल्शन सिस्टम, स्टील्थ फीचर्स और गहरे समुद्र में परिचालन क्षमता की जांच की गई, ताकि इसे हर प्रकार की परिस्थितियों में प्रभावी ढंग से संचालित किया जा सके।

INS अरिदमन की विशेषताएँ

INS अरिदमन भारत की तीसरी न्यूक्लियर-पावर्ड पनडुब्बी है, इससे पहले INS अरिहंत और INS अरिघात नौसेना का हिस्सा बन चुकी हैं। हालांकि, अरिदमन अपनी पूर्ववर्तियों की तुलना में अधिक उन्नत है। इसकी लंबाई 10 मीटर अधिक है, जिससे इसका विस्थापन भार 1,000 टन बढ़ गया है। साथ ही, यह अधिक संख्या में सबमरीन लॉन्च बैलिस्टिक मिसाइल (SLBM) ले जाने में सक्षम होगी। नौसेना में इसके शामिल होने से भारत की समुद्री रणनीतिक क्षमताएं और अधिक मजबूत होंगी।

वैश्विक परिप्रेक्ष्य

हिंद महासागर में सैन्य शक्ति संतुलन तेजी से बदल रहा है। चीन अपनी नौसैनिक क्षमताओं को निरंतर मजबूत कर रहा है और वर्तमान में उसके पास 6 बैलिस्टिक मिसाइल परमाणु पनडुब्बियां, 6 अटैक परमाणु पनडुब्बियां और 48 AIP तकनीक से लैस डीजल-इलेक्ट्रिक पनडुब्बियां हैं। भारत के पास फिलहाल AIP (एयर-इंडिपेंडेंट प्रोपल्शन) तकनीक से लैस पनडुब्बियां नहीं हैं, हालांकि इस दिशा में जर्मनी के साथ बातचीत जारी है। यदि समझौता होता है, तो भारत को पहली AIP पनडुब्बी 2030 तक मिल सकती है।

पाकिस्तान भी अपनी नौसैनिक शक्ति को उन्नत कर रहा है, जिससे भारत के लिए अपनी रक्षा क्षमताओं को मजबूत करना और भी आवश्यक हो गया है। INS अरिदमन की नौसेना में तैनाती भारत की रणनीतिक तैयारियों को नई ऊंचाई देगी और समुद्री क्षेत्र में उसकी स्थिति को और सुदृढ़ करेगी।

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