जी हां, हम हैं भारत के गरीब। जिन्हें दो वक्त की रोटी नसीब नहीं होती। जिनके पास रहने के लिए छत भी नहीं है। हम हर दिन कमाते है और हर दिन रोटी का जुगाड़ करते है। हमें अपना पेट भरने के लिए सरकार पर निर्भर होना पड़ता है। सरकारी योजनाओं के बिना हमारे घर चूल्हा नहीं जलता। हम गरीबों पर ही राजनीति टिकती है। राजनेता चुनाव के वक़्त हमसे ही मिलने आते है। सरकार भी हमे ही केंद्र में रख कर योजनाएं बनाती है। ये तो थी हमारी एक छोटी सी परिभाषा।
अब बात करते हैं वर्तमान स्थिति की। अभी कोरोना वायरस को लेकर पूरे देश में लॉक डाउन है। हर चीज बंद है। न ट्रेन चल रही है ना ही बस। ऐसे में सबसे अधिक परेशानी हम गरीबों को ही हो रही है। खाना तक नसीब नहीं हो रहा है। सरकार से लेकर सामाजिक संस्था हर दिन हमें खाना दे रहे हैं, अनाज भी दे रहे हैं, इसके साथ सरकार हमारे खाते में 1000 रुपये भी दे रही है। लेकिन जब बात हो शराब की तो हम 100 की जगह 300 दे सकते हैं, हम पेट भर दारू पी सकते हैं और हमें सरकार की कोई मदद भी नहीं चाहिए। जब बात हो गुटखा खाने की तो हम ₹5 की जगह ₹30 दे सकते हैं। पर हमें खाना तो सरकार से ही चाहिए। सरकार हमारे लिए योजना लाए और मुफ्त में राशन दे।
अब आप सोशल मीडिया पर वायरल तस्वीर और वीडियो ही देख लें, हमारी स्थिति का अंदाजा लग जायेगा। घंटो हम लाइन में लग कर शराब खरीद रहे हैं। ताकि रात हमारी रंगीन हो सके। एक गरीब की तस्वीर आपने जरूर देखी होगी जो दारु की दुकान पर फटी हुई अंडरवियर में शराब खरीदने की जद्दोजहद में लगा हुआ था। एक वीडियो भी आया छत्तीसगढ़ से, जिसमें एक शराबी शराब पीकर अर्थव्यवस्था का ज्ञान दे रहा है कि उसके दारु पीने की वजह से ही सरकार और देश चल रहा है। हम गरीब है। सरकार हमें 2 रुपये में अनाज मुहैया करवाती है। हमारे लिए इंदिरा आवास, बिरसा आवास, पीएम आवास देती है। हमारे बच्चों को मुफ्त में शिक्षा, साइकिल और एक वक्त का खाना भी देती है। हमारी बेटियों को भी सरकार की तरफ से शादी में आर्थिक मदद मिलती है। सरकार हमारी गर्भवती महिलाओं के लिए भी सुविधा देती है। हमारे परिवार का स्वास्थ्य बीमा भी है। लेकिन क्या करें साब हम सब बहुत गरीब है।
शर्म आनी चाहिए ऐसी राजनीति पर और सरकारी तंत्र पर जो देश से गरीबी खत्म करना ही नहीं चाहते। शर्म आनी चाहिए उन गरीबों को जो एक वक्त का खाना अपने परिवार के लिए नहीं जुटा पा रहे हैं पर शराब खरीदकर देश की अर्थव्यवस्था को मजबूत करने में लगे हुए हैं। सरकार ऐसी योजना क्यों नहीं लाती जिससे गरीब स्वावलंबी बने, खुद कमाए, खुद अपने परिवार का भरण पोषण करे। ना कि सरकार के द्वारा दी जा रही है सुविधाओं पर गरीब बना रहे। क्या यह कहा जा सकता है कि राजनेताओं की रोजी-रोटी इन गरीबों से ही चलती है। गरीब अगर शिक्षित हो गए, अगर बचत करने लगे, अगर अपने परिवार को बेहतर जिंदगी देने लगे तो शायद राजनीति पर एक अल्प विराम सा लग जायेगा।
कहा जा सकता है अगर देश से गरीबी दूर हो गयी तो राजनेताओं के मुद्दे भी कम होने लगेंगे। योजनाओं में गरीबी समाप्त हो जाएगी। फिर योजना मद का बंदर बांट भी नहीं हो सकेगा। लेकिन सवाल यह भी है कि गरीब क्यों गरीब बने रहना चाहते हैं। देश को वक्त से पहले इस पर विचार करने की जरूरत है। इस लेख से हम किसी को आहत नहीं करना चाहते। हमारा इरादा बस इतना है कि जो लोग अपनी जमा पूंजी को शराब, गुटखा और अन्य चीजों में बर्बाद कर रहे है उस पर लगाम लगाएं ताकि गरीब, सरकार पर नहीं खुद पर आत्मनिर्भर हो सके।