कोल माइंस ऑक्शन पर केंद्र सरकार के फैसले पर झारखण्ड के सीएम हेमंत सोरेन ने कड़ा एतराज जताया है। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा कि यह एक बहुत बड़ा व्यक्तिगत निर्णय है। जिसमें राज्य सरकार को भी कॉन्फिडेंस में लेने कि आवश्यकता है, क्योंकि खनन का विषय राज्य में हमेशा से ज्वलंत रहा है। उन्होंने कहा कि इतने वर्षों के बाद एक नई प्रक्रिया अपनाई गई है। इसी प्रक्रिया के माध्यम से ऐसा प्रतीत होता है कि फिर वही पुरानी व्यवस्था में जाएंगे जिस व्यवस्था से हम बाहर आए थे।
हेमंत सोरेन ने कहा कि मौजूदा व्यवस्था के माध्यम से भी यहां के रैयतों को इस खनन से अभी भी उसका अधिकार उनको प्राप्त नहीं हुआ है। राज्य में अभी भी विस्थापन की समस्या है जो बड़े पैमाने पर उलझी हुई है। जमीन विवाद का भी मसला राज्य में है। जिसे लेकर लगभग सभी मजदूर संगठन सड़कों पर है।
हेमंत सोरन ने कहा कि इस विषय पर हम लोगों ने जल्दबाजी न करने का केंद्र सरकार से आग्रह किया था। उन्होंने कहा केंद्र सरकार ने फैसला लेने में बहुत हड़बड़ी दिखाई है। जब पूरी दुनिया लॉकडाउन के जंजीरों से जकड़ी है तो ऐसे में भारत सरकार विदेशी निवेश की बात कर रही है। जब देश के लोगों का आवागमन बंद है तो केंद्र सरकार जल्दी बाजी क्यों कर रही है। उद्योग धंधों की स्थिति पूरे भारत में ठप पड़ा है ऐसे में नीलामी की प्रक्रिया क्यों शुरू की जा रही है। सीएम ने कहा कि केंद्र के फैसले के खिलाफ अगर कानूनी लड़ाई लड़नी पड़ेगी तो भी हम लड़ेंगे। प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना पर सीएम ने कहा कि झारखंड के 3 जिलों में यह योजना लागू की गयी हैं। हमने तो पूरे राज्य में इस योजना को पहले से ही लागू किया है।
बता दें कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा शुरू की गई 41 कोयला ब्लॉकों की वर्चुअल नीलामी के मामले में झारखंड सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 18 जून को कोयला ब्लॉकों की ऑनलाइन नीलामी की प्रक्रिया शुरू की थी। झारखंड की हेमंत सोरेन सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से इस नीलामी पर रोक लगाने की मांग की है। हेमंत सोरेन सरकार ने मांग करते हुए कहा है कि कोरोना काल के चलते खदानों का उचित मूल्य नहीं मिलेगा। वहीं सरकार का कहना है कि इन खदानों के व्यावसायिक खनन से आदिवासियों की ज़िन्दगी भी प्रभावित होगी।