केंद्र सरकार ने विवादित वक्फ (संशोधन) विधेयक में बदलाव को मंजूरी दे दी है। सूत्रों के मुताबिक, केंद्र ने संयुक्त संसदीय समिति (JPC) द्वारा प्रस्तावित 23 संशोधनों में से 14 को स्वीकार कर लिया है।
संशोधित विधेयक को 10 मार्च से शुरू होने वाले संसद सत्र में पेश किए जाने की संभावना है।
JPC रिपोर्ट पर भी हुआ विवाद
JPC ने 13 फरवरी को अपनी रिपोर्ट सौंपी थी, लेकिन विपक्षी सांसदों ने आरोप लगाया कि उनकी असहमति के नोट्स (dissent notes) रिपोर्ट से हटा दिए गए थे।
केंद्र ने इन आरोपों को खारिज किया, लेकिन यह भी कहा कि JPC अध्यक्ष जगदंबिका पाल (बीजेपी) को यह अधिकार था कि वे समिति पर किसी भी तरह के “आरोप” लगाने वाले हिस्सों को हटा सकते हैं।
हालांकि, इसके बाद लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला, संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू और विपक्षी सांसदों के बीच बैठक हुई, जिसमें तय हुआ कि असहमति के नोट्स मूल स्वरूप में शामिल किए जाएंगे।
JPC की कार्यप्रणाली पर विवाद
JPC की कार्यप्रणाली को लेकर विपक्ष और भाजपा में तीखी नोकझोंक हुई। विपक्षी सांसदों ने लोकसभा अध्यक्ष को पत्र लिखकर जगदंबिका पाल पर पक्षपात का आरोप लगाया और कहा कि उन्होंने बिना पर्याप्त विचार-विमर्श के विधेयक को आगे बढ़ाने की कोशिश की।
उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि बीजेपी सरकार 5 फरवरी को दिल्ली चुनाव से पहले विधेयक को जबरन पारित कराना चाहती थी।
हालांकि, भाजपा ने इन आरोपों को खारिज कर दिया। लोकसभा सांसद और JPC की सदस्य अपराजिता सारंगी ने कहा कि “जगदंबिका पाल ने सभी को अपनी बात रखने का पूरा मौका दिया।”
JPC ने पिछले छह महीनों में करीब तीन दर्जन बैठकें कीं, लेकिन इनमें से कई हंगामे की भेंट चढ़ गईं। एक बैठक में तो हाथापाई तक हो गई, जब तृणमूल कांग्रेस (TMC) सांसद कल्याण बनर्जी ने गुस्से में कांच की बोतल तोड़ दी।
JPC के समक्ष कुल 66 संशोधन प्रस्तावित किए गए, लेकिन
- विपक्ष द्वारा दिए गए सभी 44 संशोधन खारिज कर दिए गए, जिससे विवाद और बढ़ गया।
- भाजपा और उसके सहयोगी दलों द्वारा प्रस्तावित 23 संशोधन स्वीकार किए गए।
- इनमें से 14 को वोटिंग के बाद मंजूरी मिल गई।
गौरतलब है कि JPC में 16 सदस्य भाजपा और सहयोगी दलों से थे, जबकि विपक्ष के केवल 10 सदस्य ही थे।
विधेयक में किए गए प्रमुख बदलाव
14 स्वीकृत संशोधनों में शामिल प्रमुख बदलाव:
- वक्फ परिषद (Waqf Councils) में गैर-मुस्लिम सदस्यों का समावेश:
- मूल विधेयक में कम से कम दो गैर-मुस्लिम सदस्यों को अनिवार्य रूप से शामिल करने का प्रावधान था।
- संशोधन के बाद नियुक्ति के आधार पर यह संख्या बढ़ भी सकती है।
- वक्फ संपत्ति की पहचान:
- मूल विधेयक में वक्फ संपत्ति की पहचान का अधिकार जिला कलेक्टर को दिया गया था।
- संशोधन के बाद अब यह अधिकार राज्य सरकार द्वारा नामित अधिकारी को दिया जाएगा।
- विधेयक का प्रभाव पूर्वव्यापी (retrospective) नहीं होगा:
- यानी पहले से पंजीकृत संपत्तियों पर यह लागू नहीं होगा।
- इस बिंदु पर कांग्रेस नेता इमरान मसूद ने आपत्ति जताई और कहा कि “करीब 90% वक्फ संपत्तियां अब तक पंजीकृत ही नहीं हैं।”
विधेयक में पहले क्या था?
मूल विधेयक में 44 बदलाव प्रस्तावित किए गए थे, जो केंद्रीय और राज्य वक्फ बोर्डों के नियमों से जुड़े थे।
प्रस्तावित बदलावों में:
- प्रत्येक वक्फ बोर्ड में कम से कम दो महिलाएं और गैर-मुस्लिम सदस्य अनिवार्य रूप से शामिल करने का प्रावधान।
- केंद्रीय वक्फ परिषद में एक केंद्रीय मंत्री, तीन सांसद और चार प्रतिष्ठित व्यक्तियों को शामिल करने का प्रस्ताव।
- वक्फ संपत्तियों पर दावा करने के वक्फ परिषद के अधिकार को सीमित करना।
- दान केवल उन मुसलमानों द्वारा दिया जा सकता है, जो पिछले पांच वर्षों से ‘प्रैक्टिसिंग मुस्लिम’ हों।
- इस प्रावधान ने ‘प्रैक्टिसिंग मुस्लिम’ की परिभाषा को लेकर विवाद खड़ा कर दिया।
सरकार बनाम विपक्ष: वक्फ विधेयक पर टकराव
सरकार का दावा है कि यह विधेयक “मुस्लिम महिलाओं और बच्चों को सशक्त बनाने के लिए लाया गया है।”
हालांकि, कांग्रेस, AIMIM और DMK सहित विपक्षी दलों ने इसे “धार्मिक स्वतंत्रता पर सीधा हमला” बताया है।
- कांग्रेस नेता केसी वेणुगोपाल ने कहा कि यह संविधान के अनुच्छेद 15 (धार्मिक स्वतंत्रता) का उल्लंघन करता है।
- AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी और DMK सांसद कनिमोझी ने भी इसका विरोध किया और इसे
- अनुच्छेद 15 (किसी भी धर्म को मानने और उसका पालन करने का अधिकार)
- अनुच्छेद 30 (अल्पसंख्यक समुदायों को अपने शैक्षणिक संस्थान स्थापित करने और संचालित करने का अधिकार)
- का उल्लंघन बताया।
निष्कर्ष
सरकार ने JPC के 14 संशोधनों को स्वीकार करते हुए वक्फ विधेयक को संशोधित रूप में संसद में पेश करने की तैयारी कर ली है। लेकिन विपक्ष ने इसे अल्पसंख्यक समुदायों के अधिकारों पर हमला बताया है और इसके खिलाफ विरोध जारी रखने की घोषणा की है।