पाकिस्तान का दक्षिण-पश्चिमी प्रांत बलूचिस्तान दशकों से स्वतंत्रता की मांग कर रहे सशस्त्र विद्रोहियों का गढ़ बना हुआ है। यह इलाका प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर है, लेकिन पाकिस्तानी सरकार के लिए सबसे बड़ी सुरक्षा चुनौतियों में से एक बना हुआ है। हाल ही में, बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी (BLA), जो इस क्षेत्र में सबसे सक्रिय विद्रोही समूहों में से एक है, ने एक ट्रेन अपहरण कर पाकिस्तान को हिला कर रख दिया।
BLA ने ट्रेन हाईजैक कर दी चुनौती
11 मार्च की दोपहर बलूच विद्रोहियों ने रेलवे ट्रैक पर विस्फोट कर जाफर एक्सप्रेस को रोक दिया। यह ट्रेन 30 घंटे की यात्रा पर क्वेटा से पेशावर जा रही थी और उसमें 400 से अधिक यात्री सवार थे। रमज़ान का समय था, और यात्री ईद से पहले अपने घरों को लौट रहे थे। ट्रेन एक सुरंग में फंस गई, जिससे पाकिस्तानी बलों और विद्रोहियों के बीच रातभर गोलीबारी होती रही।
विद्रोहियों ने बलूच राजनीतिक कैदियों की रिहाई की मांग की और धमकी दी कि अगर 48 घंटे में उनकी मांगें नहीं मानी गईं, तो वे पूरी ट्रेन को उड़ा देंगे। 30 घंटे के भीतर पाकिस्तानी बलों ने ऑपरेशन पूरा किया, जिसमें 33 विद्रोही मारे गए और बंधकों को छुड़ा लिया गया। इस दौरान 21 यात्रियों और 4 सुरक्षाकर्मियों की मौत भी हो गई।
बलूच क्यों चाहते हैं आज़ादी?
बलूचिस्तान, पाकिस्तान का सबसे बड़ा और सबसे कम आबादी वाला प्रांत है, जहां लंबे समय से स्वतंत्रता की मांग की जाती रही है। ब्रिटिश हुकूमत ने इस इलाके का इस्तेमाल अपने औपनिवेशिक हितों की सुरक्षा के लिए किया था, लेकिन स्थानीय प्रतिरोध के कारण 19वीं शताब्दी में उन्होंने ‘अस्थिरता से बचने’ की नीति अपनाई।
लेकिन 1947 में भारत-पाकिस्तान विभाजन के दौरान पाकिस्तान ने बलूच नेताओं पर दबाव डालकर बलूचिस्तान को अपने साथ मिला लिया। इस जबरदस्ती के कारण वहां के लोगों में गुस्सा बढ़ गया और वे एक स्वतंत्र बलूचिस्तान के लिए और अधिक संघर्ष करने लगे।
आज बलूच नेताओं का आरोप है कि पाकिस्तान सरकार उनके संसाधनों का शोषण कर रही है और उन्हें उनके ही राज्य में हाशिए पर धकेला जा रहा है।
बलूचिस्तान खनिज संपदाओं से भरपूर है। यहां के रेको डिक और सैंडक इलाकों में सोने और तांबे के बड़े भंडार हैं। इसके अलावा लोहा, सीसा, जिंक और कोयले के विशाल भंडार भी हैं। लेकिन बलूचों का दावा है कि ये संसाधन उनकी संपत्ति हैं, जिन्हें पाकिस्तान सरकार उनकी अनुमति के बिना लूट रही है।
विद्रोह और चीन-पाकिस्तान संबंध
इस क्षेत्र में BLA और बलूचिस्तान लिबरेशन फ्रंट (BLF) जैसे कई सशस्त्र संगठन पाकिस्तान सरकार के खिलाफ संघर्ष कर रहे हैं।
चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (CPEC) के तहत चीन ने यहां भारी निवेश किया है, खासकर ग्वादर पोर्ट पर। लेकिन बलूच विद्रोही मानते हैं कि स्थानीय लोगों को इसमें कोई भागीदारी नहीं दी गई है, जिससे उनका गुस्सा और भड़क गया है। विद्रोही चीन को अस्थिरता दिखाकर पाकिस्तान पर दबाव डालने की रणनीति अपना रहे हैं।
जिन्ना का विश्वासघात
भारत और पाकिस्तान की स्वतंत्रता के समय बलूचिस्तान भी एक स्वतंत्र राज्य घोषित हुआ था।
इस क्षेत्र में चार रियासतें थीं – खारान, मकरान, लस बेला और कलात। विभाजन से पहले इन रियासतों को तीन विकल्प दिए गए थे – भारत में विलय, पाकिस्तान में विलय या स्वतंत्र रहना।
कलात के खान, मीर अहमद यार खान ने स्वतंत्र रहने का निर्णय लिया, जबकि अन्य तीन पाकिस्तान में शामिल हो गए।
शुरुआत में मोहम्मद अली जिन्ना ने भी कलात की स्वतंत्रता को स्वीकार कर लिया था। खान ने जिन्ना को मित्र समझा और उम्मीद की कि वह बलूचिस्तान की स्वतंत्रता सुनिश्चित करेंगे।
लेकिन जल्द ही जिन्ना ने अपनी बात से पलटी मार ली।
18 मार्च 1948 को जिन्ना ने खारान, मकरान और लस बेला को पाकिस्तान में शामिल करने की घोषणा कर दी, जिससे कलात पूरी तरह पाकिस्तान से घिर गया।
एक झूठी अफवाह फैलाई गई कि खान भारत के साथ मिलना चाहते हैं, जिससे पाकिस्तान नाराज हो गया और अंततः खान के पास पाकिस्तान में विलय के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा।
बलूच विद्रोह का इतिहास
- 1954: पाकिस्तान सरकार के वन यूनिट प्लान के खिलाफ दूसरा विद्रोह हुआ, जिसमें बलूचिस्तान को पश्चिमी पाकिस्तान में मिला दिया गया।
- 1958: नवाब नौरोज़ खान ने स्वतंत्रता की घोषणा की, लेकिन पाकिस्तानी सेना ने उन्हें धोखा देकर पकड़ लिया।
- 1963: तीसरा विद्रोह शेर मोहम्मद बिजरानी मार्री के नेतृत्व में हुआ, लेकिन 1969 में समझौता हुआ और बलूचिस्तान को अलग प्रांत बनाया गया।
- 1970 का दशक: बांग्लादेश की आज़ादी से प्रेरित होकर बलूचों ने अधिक स्वायत्तता की मांग उठाई। लेकिन तत्कालीन प्रधानमंत्री ज़ुल्फिकार अली भुट्टो ने इसे नकार दिया और 1973 में बलूच सरकार को बर्खास्त कर दिया। इसके बाद चार साल तक पाकिस्तानी सेना और बलूच लड़ाकों के बीच खूनी संघर्ष हुआ।
- 2000 के बाद: पाकिस्तानी सेना पर एक महिला डॉक्टर के बलात्कार का आरोप लगा, जिससे विद्रोह और तेज़ हो गया। इसके बाद बलूच विद्रोहियों ने पाकिस्तानी सुरक्षाबलों और बुनियादी ढांचे पर हमले तेज़ कर दिए।
संघर्ष जारी है
बलूचिस्तान का संघर्ष आज भी जारी है।
हर दौर में पाकिस्तान ने बलूचों की मांगों को अनदेखा किया है, जिससे यहां का आंदोलन और तेज़ होता गया है।
अब सवाल यह है कि क्या पाकिस्तान बलूच जनता की आवाज़ सुनेगा, या यह संघर्ष आने वाले वर्षों में और भी उग्र रूप लेगा?