कोरोना वायरस, जिसके ऊपर विश्व भर में लाखों लोगों की हत्याओं का आरोप लगा है। इस खतरनाक वायरस से बचने के लिए पूरा विश्व एकजुट होकर प्रयास कर रहा है। वहीं भारत ने भी 21 दिनों का लॉक डाउन लगाया गया है, ताकि कोरोना के इस चैन को तोड़ा जा सके। लेकिन 21 दिनों के इस लॉक डाउन को विफल बनाने में कई लोग लगे हुए हैं।
एक तरफ जहां लॉक डाउन के दौरान लोगों को घरों पर रहने की हिदायत दी गई है, वहीं दूसरी तरफ सरकार और जिला प्रशासन सरकारी और प्राइवेट अस्पतालों में कोरेनटाईन सेंटर बनाकर लोगों का इलाज कर रही है।
विडंबना यह है कि सरकार की कोरोना वायरस से लड़ने की यह मुहिम सफल होती नहीं दिख रही। जहां सरकार अपनी तैयारी को मुकम्मल बता रही है वहीं हकीकत इन सबसे पर हैं। अस्पतालों में जांच करवाने आए मरीजों को पता तक नहीं है कि जांच कहां करवाई जाए, रिपोर्ट कहां से लेना है, ब्लड सैंपल कहां देना है, ऐसे में अपने स्वास्थ्य के प्रति सचेत रहने वाले लोग के अंदर गुस्सा पनप रहा है।
हाल में झारखंड में मिले चौथे कोरोना वायरस के मरीज का जिस जगह पर इलाज चल रहा था उस डायलिसिस सेंटर को बंद करने का आदेश दे दिया गया है। ऐसे में वहां इलाज करवा रहे दूसरे अन्य लोग भी कोरोना वायरस से संक्रमित हो सकते हैं ऐसी संभावना जिला प्रशासन को है। फिलहाल जिला प्रशासन ने सभी को टेलीफोन करके अपना जांच करवाने का आदेश दिया है। लेकिन जांच कहां करवानी है, कैसे करवानी है, इस पर किसी प्रकार की कोई जानकारी नहीं दी गई है। फिलहाल लोग अभी भी संशय में हैं कि आखिर जांच कहां करवाई जाए, कैसे करवाई जाए।
कोरोना वायरस से संक्रमित होने को लेकर डरे हुए लोग फिलहाल रिम्स में चक्कर लगाकर नजर आ रहे हैं।
बरहाल सरकार को चाहिए कि कोरोना से जुड़ी सारी जानकारी सार्वजनिक रूप से साझा कर इस बात को सुनिश्चित करें कि जांच सही तरीके से हो रही है या नहीं। वहीं जिला प्रशासन का भी यह दायित्व है कि वे न सिर्फ टेलीफोन कर लोगों को सचेत करें बल्कि मुकम्मल जांच की व्यवस्था भी करें।