झारखण्ड के प्रथम मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी ने कहा है कि सीएमआईई की रिपोर्ट में झारखंड को पूरे देश में बेरोजगारी के मामले में पहले स्थान पर बताया गया है। रिपोर्ट के अनुसार मार्च में यह दर 8.2 फीसदी थी जो कोरोना संकट के इस दो माह में बढ़कर 59.2 फीसदी हो गई है। इस वैश्विक आपदा से उपजी यह भयावह तस्वीर प्रदेश के लिए काफी चिंता का विषय है। इन आंकड़ों को भविष्य में आने वाली चुनौतियों के संकेत के तौर पर देखने की जरूरत है। साथ ही इससे निपटने की दिशा में एक दिन भी विलंब किए बगैर अभी से ही जुट जाने की जरूरत है।
उन्होंने कहा कि राज्य सरकार ने खुद स्वीकार किया है कि प्रवासी मजदूरों की संख्या 10 लाख से अधिक है। जबकि जो जानकारी प्राप्त हो रही है यह संख्या 12 लाख के आंकड़े से भी अधिक है। राज्य सरकार और हम सब भी यह संख्या अनुमान के तौर पर ही सामने रख रहे हैं। वास्तविक संख्या का आंकड़ा किसी के पास नहीं है। इन 10-12 लाख मजदूरों में से कितने प्रवासी मजदूर इस संकट की घड़ी में घर वापस आ चुके हैं, हमें लगता है कि इसका भी शायद ही कोई फैक्ट आंकड़ा सरकार के पास तैयार हो। अनुमान के तौर पर सरकार भले ही जो संख्या प्रस्तुत कर दे। राज्य सरकार सभी प्रवासी मजदूरों को झारखंड में ही रोजगार मुहैया कराने की बात कह रही है। सरकार अपने स्तर से इस दिशा लगी भी हुई है।
उन्होंने कहा कि भगवान करे, राज्य सरकार ऐसा करने में सफल हो जाए। राज्य सरकार को हमारी ओर से इसके लिए शुभकामना। परंतु सच्चाई यह है कि इतनी बड़ी तादाद में लोगों को उनके हुनर के हिसाब से रोजगार उपलब्ध कराना किसी भी सरकार के लिए संभव नहीं है। यह सब बातें सुनने-सुनाने में ही अच्छी लगती है, यह व्यवहारिक नहीं है। अब पलंबर या आईटी सेक्टर वाले को मनरेगा में काम करने के लिए बोला जाएगा तो उनके लिए यह करना असहज होगा। लिहाजा अधिकांशः जो प्रवासी मजदूर वापस आए हैं, थोड़े हालात अनुकूल होते ही वे पुनः झारखंड से वापस चले भी जाएंगे। सुनने में तो आ रहा है कि कुछ मजदूर वापस अपने रोजगार स्थल तक लौटने भी लगे हैं। ये किसी के रोकने से रूकेंगे नहीं। एक तो पेट की मजबूरी, दूसरा काम का सेट-अप तैयार होना। दूसरे राज्यों में जहां ये काम करते हैं, उनका सेट-अप तैयार है।