पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने बीएसएफ के पूर्व कॉन्स्टेबल जगपाल शर्मा की बर्खास्तगी को बरकरार रखते हुए स्पष्ट किया कि न्यायालय को गलत सहानुभूति के आधार पर निर्देशित नहीं होना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि किसी कर्मचारी को सेवा से हटाना कठिन निर्णय होता है, लेकिन केवल इसी आधार पर सजा को कम करना उचित नहीं होगा।
क्या है मामला?
बीएसएफ कॉन्स्टेबल जगपाल शर्मा को जम्मू-कश्मीर में तैनाती के दौरान अपने साथी सैनिक की पत्नी की शील भंग करने की कोशिश के आरोप में बर्खास्त किया गया था। यह घटना 17 अक्टूबर 2013 की रात को बीएसएफ की 32वीं बटालियन के मुख्यालय में घटी थी, जब आरोपी ने सहकर्मी की पत्नी पर आपराधिक बल का प्रयोग कर जबरन उसके घर में घुसने की कोशिश की।
कोर्ट ने क्या कहा?
जस्टिस विनोद एस. भारद्वाज की अध्यक्षता में सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने कहा कि वर्दीधारी सेवा के अनुशासन व नैतिक मूल्यों को बनाए रखना सर्वोपरि है। कोर्ट ने इसे गंभीर अपराध मानते हुए कहा कि जब कोई सैनिक अपने कर्तव्य पर तैनात होता है, तो उसके परिवार की सुरक्षा की जिम्मेदारी उसके साथियों पर होती है, न कि इस विश्वास का दुरुपयोग करने की।
याचिकाकर्ता की दलीलें खारिज
जगपाल शर्मा ने हाईकोर्ट में बर्खास्तगी के खिलाफ अपील दायर करते हुए तर्क दिया कि:
- उसे उचित सुनवाई का अवसर नहीं दिया गया।
- शिकायतकर्ता और गवाहों के बयानों की निष्पक्ष जांच नहीं हुई।
- कोई ठोस मेडिकल साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया गया।
- बर्खास्तगी की सजा अत्यधिक कठोर और अनुपातहीन है।
हालांकि, हाईकोर्ट ने इन दलीलों को खारिज कर दिया और कहा कि अनुशासनहीनता वर्दीधारी सेवा के सम्मान पर सीधा प्रहार है।
कोर्ट का सख्त संदेश
हाईकोर्ट ने कॉन्स्टेबल की बर्खास्तगी को सही ठहराते हुए स्पष्ट किया कि ऐसे अनुचित कृत्यों को किसी भी स्थिति में नज़रअंदाज नहीं किया जा सकता। यह न केवल सैनिक अनुशासन के खिलाफ है, बल्कि पूरी वर्दीधारी सेवा के सम्मान को ठेस पहुंचाता है।
न्यायालय ने इस आधार पर याचिका खारिज कर दी और बर्खास्तगी के आदेश को बरकरार रखा।