“लगभग अप्रासंगिक”: पीएम मोदी ने UN और अंतरराष्ट्रीय संगठनों पर साधा निशाना

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अमेरिकी वैज्ञानिक लेक्स फ्रिडमैन के पॉडकास्ट में रविवार को संयुक्त राष्ट्र (UN) और अन्य अंतरराष्ट्रीय संगठनों की प्रासंगिकता पर सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि ये संस्थाएं आज की वैश्विक चुनौतियों के बीच अप्रासंगिक हो चुकी हैं, क्योंकि इनमें कोई सुधार (reform) नहीं हुआ है। पीएम मोदी ने मध्य पूर्व में जारी युद्धों और चीन-अमेरिका के बीच बढ़ते तनाव का हवाला देते हुए इन संगठनों की भूमिका पर गंभीर प्रश्न खड़े किए।

संयुक्त राष्ट्र और अन्य संगठनों पर पीएम मोदी की टिप्पणी

पीएम मोदी ने कहा,
“जो अंतरराष्ट्रीय संगठन बनाए गए थे, वे लगभग अप्रासंगिक हो गए हैं। उनमें कोई सुधार नहीं हुआ है। UN जैसी संस्थाएं अपनी भूमिका नहीं निभा पा रही हैं। दुनिया में ऐसे लोग हैं जो कानूनों और नियमों की परवाह नहीं करते, और उन्हें रोकने वाला कोई नहीं है।”

कोविड-19 से सीखे गए सबक और विश्व शांति की जरूरत

प्रधानमंत्री मोदी ने कोविड-19 महामारी से मिली सीख पर भी जोर दिया। उन्होंने कहा कि इस महामारी ने सभी देशों की सीमाओं और कमजोरियों को उजागर कर दिया, लेकिन इसके बावजूद दुनिया शांति की ओर बढ़ने के बजाय और अधिक बिखराव और अनिश्चितता की ओर चली गई

“कोविड-19 ने हमें हमारी सीमाएं दिखा दीं। हम खुद को कितना भी महान, प्रगतिशील या वैज्ञानिक रूप से उन्नत मानें, लेकिन इस महामारी ने सभी को धरातल पर ला दिया। ऐसा लगा कि इससे हम सीखेंगे और एक नए विश्व व्यवस्था की ओर बढ़ेंगे। लेकिन दुर्भाग्य से, इसके विपरीत, दुनिया युद्ध और अस्थिरता में फंस गई,” पीएम मोदी ने कहा।

विकास और सहयोग की ओर बढ़ने की अपील

पीएम मोदी ने संघर्ष (conflict) से सहयोग (cooperation) की ओर बढ़ने और विकास आधारित दृष्टिकोण अपनाने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि आज के परस्पर निर्भर (interdependent) और जुड़े हुए (interconnected) विश्व में विस्तारवाद (expansionism) की कोई जगह नहीं है। उन्होंने देशों से एक-दूसरे का समर्थन करने की जरूरत पर जोर दिया।

“जैसा कि मैंने पहले कहा, दुनिया आपस में जुड़ी हुई है, सभी को सभी की जरूरत है, कोई भी अकेले कुछ नहीं कर सकता। मैं देखता हूं कि जहां भी मैं जाता हूं, हर कोई संघर्ष को लेकर चिंतित है। हमें उम्मीद है कि जल्द ही इससे राहत मिलेगी,” उन्होंने कहा।

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में भारत की स्थायी सदस्यता की मांग

भारत पिछले कई दशकों से संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में स्थायी सदस्यता की मांग कर रहा है। भारत का मानना है कि 1945 में बनी यह संस्था आज की वैश्विक सच्चाइयों को नहीं दर्शाती और 21वीं सदी की जरूरतों के हिसाब से इसमें सुधार किया जाना चाहिए।

वर्तमान में UNSC में 5 स्थायी सदस्य (रूस, अमेरिका, चीन, फ्रांस, और ब्रिटेन) और 10 गैर-स्थायी सदस्य होते हैं, जिन्हें संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा दो साल की अवधि के लिए चुना जाता है। स्थायी सदस्य देशों को वीटो पावर प्राप्त है, जिससे वे किसी भी बड़े प्रस्ताव को रोक सकते हैं।

ब्रिटेन, फ्रांस और अमेरिका भारत को UNSC में स्थायी सदस्यता देने के पक्षधर रहे हैं, लेकिन अब तक इस पर कोई ठोस निर्णय नहीं लिया गया है। 2021-22 में भारत ने UNSC में गैर-स्थायी सदस्य के रूप में कार्य किया था

संयुक्त राष्ट्र में सुधार की आवश्यकता

पीएम मोदी ने पिछले साल संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) में ‘Summit of the Future’ को संबोधित करते हुए संयुक्त राष्ट्र में बदलाव की जरूरत पर जोर दिया था। उन्होंने कहा था कि अगर इस संस्था को प्रासंगिक बने रहना है तो इसमें सुधार आवश्यक है

“वैश्विक कार्यवाही (global action) को वैश्विक महत्वाकांक्षा (global ambition) से मेल खाना चाहिए,” पीएम मोदी ने कहा था।

निष्कर्ष

पीएम मोदी के इस बयान ने संयुक्त राष्ट्र की भूमिका और उसकी प्रभावशीलता को लेकर एक नई बहस छेड़ दी है। उन्होंने साफ कहा कि अगर इन संस्थाओं में सुधार नहीं होता, तो वे अपनी प्रासंगिकता खो देंगी। भारत की UNSC में स्थायी सदस्यता की मांग को भी इस संदर्भ में देखा जा सकता है, जो भारत के बढ़ते वैश्विक प्रभाव और इसकी नेतृत्वकारी भूमिका को दर्शाता है

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