केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री अन्नपूर्णा देवी ने हाल ही में इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक फैसले की कड़ी निंदा की है, जिसमें कहा गया कि किसी महिला के स्तन दबाना और उसके पायजामे की डोरी तोड़ना बलात्कार की श्रेणी में नहीं आता, बल्कि यह वस्त्र उतारने के इरादे से किया गया हमला माना जाएगा।
इस फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए मंत्री अन्नपूर्णा देवी ने इसे गलत करार दिया और सुप्रीम कोर्ट से इस मामले का संज्ञान लेने की अपील की। उन्होंने चेतावनी दी कि ऐसा फैसला समाज में गलत संदेश भेजेगा।
फैसले पर विरोध, सुप्रीम कोर्ट से हस्तक्षेप की मांग
यह मामला न्यायमूर्ति राम मनोहर नारायण मिश्रा के उस फैसले से जुड़ा है, जिसमें उन्होंने दो आरोपियों के खिलाफ बलात्कार के आरोपों को खारिज कर दिया।
मंत्री अन्नपूर्णा देवी के बयान का समर्थन करते हुए कई महिला नेताओं ने भी सुप्रीम कोर्ट से दखल देने की मांग की।
तृणमूल कांग्रेस सांसद जून मालिया ने NDTV से कहा,
“यह बेहद घिनौना है कि हमारे देश में महिलाओं के प्रति ऐसा रवैया अपनाया जाता है। हमें इस मानसिकता से बाहर निकलने की जरूरत है।”
आप सांसद और पूर्व DCW प्रमुख स्वाति मालीवाल ने भी इस फैसले की निंदा करते हुए कहा,
“यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण और चौंकाने वाला फैसला है। मुझे समझ नहीं आता कि इस अपराध को बलात्कार की श्रेणी में क्यों नहीं रखा गया। सुप्रीम कोर्ट को इसमें हस्तक्षेप करना चाहिए।”
मामले की पृष्ठभूमि
यह घटना 10 नवंबर 2021 की है। पीड़िता की शिकायत के अनुसार, वह अपनी 14 वर्षीय बेटी के साथ अपनी भाभी के घर से लौट रही थी, जब गांव के तीन व्यक्ति – पवन, आकाश और अशोक रास्ते में मिले।
पवन ने पीड़िता की बेटी को मोटरसाइकिल पर घर छोड़ने का प्रस्ताव दिया, जिस पर महिला ने विश्वास करके बेटी को उसके साथ भेज दिया। लेकिन आरोप है कि रास्ते में उसने और उसके साथियों ने लड़की पर हमला किया।
शिकायत के अनुसार, पवन और आकाश ने महिला के स्तनों को दबाया और आकाश ने उसे पुलिया के नीचे घसीटने की कोशिश की। इसी दौरान उसने पीड़िता के पायजामे की डोरी भी तोड़ दी। महिला की चीख-पुकार सुनकर दो लोग मौके पर पहुंचे, जिससे आरोपी भाग निकले। आरोप है कि भागते समय उन्होंने देशी कट्टा लहराया।
न्यायालय का फैसला
जांच के बाद ट्रायल कोर्ट ने आरोपियों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 376 (बलात्कार) सहित अन्य धाराओं में आरोप तय किए। लेकिन आरोपियों ने हाईकोर्ट में इसे चुनौती दी।
इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति मिश्रा ने मामले की समीक्षा करते हुए कहा कि आरोपियों की हरकतें बलात्कार या बलात्कार के प्रयास की श्रेणी में नहीं आती।
न्यायाधीश ने अपने फैसले में कहा:
“इस मामले में, आरोप है कि पवन और आकाश ने पीड़िता के स्तनों को दबाया और आकाश ने उसके पायजामे की डोरी तोड़कर उसे पुलिया के नीचे खींचने की कोशिश की। लेकिन गवाहों के हस्तक्षेप के कारण वे भाग गए।”
न्यायालय ने यह भी कहा कि केवल यह तथ्य यह निष्कर्ष निकालने के लिए पर्याप्त नहीं है कि आरोपियों ने बलात्कार करने का निश्चय किया था।
फैसले में कहा गया,
“तैयारी और अपराध के प्रयास में अंतर यह होता है कि प्रयास में संकल्प की उच्चतम सीमा होती है।”
फैसले पर विवाद जारी
इस फैसले को लेकर समाज में कड़ी प्रतिक्रिया देखने को मिल रही है। कई महिला संगठनों और नेताओं ने सुप्रीम कोर्ट से इस पर संज्ञान लेने और न्याय सुनिश्चित करने की मांग की है।