जिला परिषद चुनाव ने खोल दी हजारीबाग जिला भारतीय जनता पार्टी के अंदरूनी कलह की पोल

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यशवंत सिन्हा, शत्रुघ्न सिन्हा के बाद कहीं भाजपा के लिए अगले क्रांतिवीर जयंत सिन्हा तो नहीं? वर्त्तमान के क्रियाकलाप और हज़ारीबाग जिला भाजपा में चल रहे जबरदस्त अंतरकलह भविष्य के कई संकेत स्पष्टता से दे रहे हैं।

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यशवंत सिन्हा, शत्रुघ्न सिन्हा के बाद कहीं भाजपा के लिए अगले क्रांतिवीर जयंत सिन्हा तो नहीं? वर्त्तमान के क्रियाकलाप और हज़ारीबाग जिला भाजपा में चल रहे जबरदस्त अंतरकलह भविष्य के कई संकेत स्पष्टता से दे रहे हैं।

हजारीबाग जिले के भाजपा विधायक व पूर्व विधायक एक तरफ और सांसद जयंत सिन्हा अपने प्रतिनिधियों के साथ दूसरी तरफ खड़े नजर आ रहे हैं।

यशवंत सिन्हा जिनका बड़ा हाथ रहा है देश के मोदी विरोधी धड़े को एकीकृत करने में, चाहे लगातार हो रहे बैठकों का दौर हो, भाजपा विरोधी रणनीति हो या मोदी सरकार की कार्यशैली पर तकरीबन हर दिन प्रहार करना। बंगाल चुनाव में टीएमसी के सांसद उम्मीदवार श्री शत्रुघ्न सिन्हा को जीत दिलवाने के लिए तथा भाजपा उम्मीदवार को हरवाने के लिए श्री यशवंत सिन्हा जी ने एड़ी चोटी का जोर लगाया था। उसी की पुनरावृति हजारीबाग में भी करने का पुरजोर प्रयास किया गया है। अब लगता है पिता के नक़्शे कदम पर पुत्र जयंत सिन्हा ने भी मध्यमार्गिये रास्ता चुन लिया है। हाल के दिनों में जयंत सिन्हा को भाजपा के केंद्रीय व राज्य के नेतृत्व द्वारा लगातार एक के बाद एक झटके लगना बहुत कुछ दिखलाता है, जैसे मंत्रिमंडल से दूर रखना, कोई भी संगठनात्मक जिम्मेदारी ना देना साथ ही कुछ दिनों पूर्व झारखण्ड भाजपा कोर कमिटी से बाहर का रास्ता दिखा देना।

ताज़ा मामला है हजारीबाग जिला परिषद चुनाव का जिसमें अध्यक्ष के रूप में इचाक प्रखंड के सिझुआ ग्राम निवासी सह इचाक पश्चिमी क्षेत्र से नवनिर्वाचित जिप सदस्य श्री उमेश प्रसाद मेहता एवं जिला परिषद उपाध्यक्ष के रूप में बरही प्रखंड के बेला दोहर ग्राम निवासी सह बरही पूर्वी क्षेत्र से नवनिर्वाचित जिप सदस्य श्री किशुन यादव की एकतरफा जीत हुई। लेकिन दिलचस्प बात इनके विरुद्ध खड़े हुए प्रत्याशी व इन्हें रोकने के लिए किया गया प्रयास जो भाजपा के अंतरकलह की पोल खोल रहा है। हजारीबाग जिले के भाजपा विधायक जेपी पटेल और मनीष जायसवाल के साथ पूर्व विधायक मनोज यादव एक तरफ और हजारीबाग सांसद जयंत सिन्हा अपने प्रतिनिधियों के साथ दूसरी तरफ खड़े नजर आय और खूब नूरा कुश्ती भी हुई।

अचानक मामले की जानकारी मिलते ही सांसद जयंत सिन्हा विदेश से लौटे और उन्होंने भी पूरी जोर लगा दी। इसी क्रम में 17 जून की रात सांसद आवास पर एक बैठक आयोजित की गई जिसमें यह फैसला लिया गया कि सांसद महोदय के एक प्रतिनिधि जिनका नाम सर्वेश कुमार सिंह (भाग 28) है वह अध्यक्ष के पद पर और बरही के एक दूसरे सांसद प्रतिनिधि जिनका नाम गणेश यादव है उनकी पत्नी मंजू देवी (भाग 5) उपाध्यक्ष के पद पर अपनी दावेदारी पेश करेंगी।

आपसी कलह इस कदर हावी है कि तीनों विधायकों बनाम सांसद की लड़ाई में सांसद समर्थित प्रत्याशी खुलेआम कांग्रेस के प्रतिनिधियों का भी समर्थन लेने से भी पीछे नहीं हटे। एक तरफा हार होता देख 8 लोगों ने जिनमें सांसद प्रतिनिधि सर्वेश कुमार सिंह और सांसद प्रतिनिधि गणेश यादव की पत्नी मंजू देवी भी शामिल है उन्होंने अन्य 6 लोगों के साथ उपायुक्त महोदया को पत्र लिखकर चुनाव रोकने के आग्रह के साथ हर संभव प्रयास किया और सुनियोजित तरीके से यह माहौल बनाया गया की भाजपा के विधायकगण अपने प्रत्याशियों के साथ भ्रष्टाचार में लिप्त हैं जिससे बीजेपी समर्थित सदस्य चुनाव ना जीत सके। लेकिन टीम जयंत सिन्हा की मंशा सफल नहीं हुई और जे.पी पटेल ,मनोज कुमार यादव तथा मनीष जायसवाल के उम्मीदवारों ने बाजी मारी और बीजेपी के सदस्य जिला परिषद अध्यक्ष व उपाध्यक्ष पद पर विजयी हुए।

एक दिलचस्प बात यह है कि सांसद प्रतिनिधि सर्वेश कुमार सिंह जो की जिला परिषद अध्यक्ष पद पर दावा ठोक रहे थे वह भाजपा से निष्कासित किए जा चुके हैं पार्टी विरोधी गतिविधियों में लिप्त होने के आरोप में। भाजपा से निष्कासित व्यक्ति आज भी हजारीबाग सांसद का प्रतिनिधि है। सिर्फ यही नहीं एक अन्य व्यक्ति जिनका नाम मिथिलेश पाठक है वह भी पार्टी विरोधी गतिविधियों में भाजपा से निष्कासित हो चुके हैं लेकिन आज भी सांसद जयंत सिन्हा के प्रतिनिधि हैं। तृणमूल कांग्रेस का एक बेहद ही लोकप्रिय नारा है “खेला होबे” और हजारीबाग जिला भाजपा के अंदरूनी अंतरकलह से यहां भी ऐसा प्रतीत होता है कि “खेला होबे”।

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