तमिलनाडु सरकार द्वारा राज्य के बजट प्रचार सामग्री में रुपये के प्रतीक (₹) को तमिल अक्षर “रु” से बदलने को लेकर विवाद खड़ा हो गया है। इस पर रुपये के प्रतीक को डिज़ाइन करने वाले डी. उदय कुमार ने प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने इस फैसले को लेकर कोई नाराजगी नहीं जताई और कहा कि यह राज्य सरकार का निर्णय है, और उन्हें इस पर कुछ भी कहने की आवश्यकता नहीं है।
“मुझे अपने डिज़ाइन पर गर्व है, लेकिन यह सरकार का फैसला है”
2009 में राष्ट्रीय प्रतियोगिता के तहत रुपये का प्रतीक डिज़ाइन करने वाले डी. उदय कुमार ने कहा कि उन्हें अपने डिज़ाइन पर गर्व है। हालांकि, उन्होंने स्पष्ट किया कि राज्य सरकार के इस निर्णय को वे अपनी डिज़ाइन का अपमान नहीं मानते।
“हर डिज़ाइन सफल नहीं होता और सभी को सराहना नहीं मिलती। कई बार आलोचना भी झेलनी पड़ती है। एक डिज़ाइनर के तौर पर हमें इसे सकारात्मक रूप से लेना चाहिए, सीखना चाहिए और आगे बढ़ना चाहिए। मैं इस फैसले को अपने काम की अनदेखी या अपमान के रूप में नहीं देखता,” उन्होंने NDTV से बातचीत में कहा।
उन्होंने आगे बताया कि जब उन्होंने रुपये का प्रतीक डिज़ाइन किया था, तब उनका एकमात्र उद्देश्य डिज़ाइन के ब्रिफ को पूरा करना और एक ऐसा सिंबल बनाना था जो सरल, प्रभावशाली और व्यापक रूप से उपयोग में लाया जा सके।
राजनीतिक विवाद में आया रुपये का प्रतीक
तमिलनाडु बीजेपी अध्यक्ष के. अन्नामलाई ने राज्य सरकार के इस फैसले पर तीखी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि डी. उदय कुमार खुद तमिलियन हैं और उनकी डिज़ाइन को बदलना डीएमके की “मूर्खता” को दर्शाता है। उन्होंने यह भी बताया कि उदय कुमार, डीएमके के पूर्व विधायक एन. धर्मलिंगम के बेटे हैं।
इसके जवाब में डीएमके ने कहा कि वे रुपये के प्रतीक के खिलाफ नहीं हैं, बल्कि तमिल भाषा को बढ़ावा देने के लिए “रु” अक्षर का उपयोग किया गया है।
इस पर उदय कुमार ने स्पष्ट किया कि उनका डीएमके से कोई संबंध नहीं है और यह महज एक संयोग है कि उनके पिता एक समय विधायक थे। उन्होंने कहा, “मेरे जन्म से पहले ही मेरे पिता विधायक थे। यह मेरे काम से जुड़ा हुआ मुद्दा नहीं है।”
हिंदी थोपने के विवाद से खुद को दूर रखा
जब राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) और हिंदी थोपने के विवाद पर उनकी राय पूछी गई, तो उन्होंने कहा कि यह एक अलग मुद्दा है और वे खुद को केवल डिज़ाइन के पहलू तक सीमित रखना चाहते हैं।
रुपये के प्रतीक की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
आईआईटी बॉम्बे के इंडस्ट्रियल डिज़ाइन सेंटर से पीएचडी धारक उदय कुमार ने 2009 में राष्ट्रीय प्रतियोगिता में रुपये के लिए प्रतीक डिज़ाइन किया था, जिसे 2010 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की सरकार ने आधिकारिक तौर पर अपनाया।
उन्होंने बताया था कि इस प्रतीक में देवनागरी ‘र’ और रोमन ‘R’ का संयोजन किया गया था, ताकि यह भारतीय संस्कृति के अनुरूप होने के साथ-साथ वैश्विक स्तर पर भी प्रभावशाली और पहचानने योग्य हो।
तमिलनाडु बनाम केंद्र: रुपये के प्रतीक पर जुबानी जंग
इस पूरे विवाद की शुरुआत तब हुई जब मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने राज्य के बजट से जुड़े प्रचार में “रु” अक्षर वाला नया लोगो साझा किया। इसके बाद बीजेपी और केंद्र सरकार ने इस पर तीखी प्रतिक्रिया दी।
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने इस फैसले की निंदा करते हुए कहा कि “यह क्षेत्रीय गौरव की आड़ में अलगाववादी मानसिकता को बढ़ावा देता है”। उन्होंने सवाल उठाया कि यदि डीएमके को रुपये के प्रतीक से दिक्कत थी, तो उन्होंने पहले कभी इस पर आपत्ति क्यों नहीं जताई?
इस बीच, बीजेपी नेता अन्नामलाई ने कहा कि तमिल अक्षर “रु” का उपयोग तमिल भाषा में किया जाता है, लेकिन इसे राष्ट्रीय प्रतीक के स्थान पर नहीं रखा जा सकता। उन्होंने डीएमके पर भाषा को लेकर केंद्र सरकार से “युद्ध छेड़ने” का आरोप लगाया।
निष्कर्ष
रुपये के प्रतीक को लेकर यह विवाद अब राजनीतिक रंग ले चुका है। जहां डीएमके इसे तमिल भाषा को बढ़ावा देने की पहल बता रही है, वहीं बीजेपी इसे अलगाववादी सोच का प्रतीक मान रही है। डिज़ाइनर डी. उदय कुमार ने इस विवाद से दूरी बनाए रखते हुए इसे सिर्फ एक डिज़ाइन संबंधी निर्णय माना है।