अमेरिका और यूक्रेन के बीच पहले से ही तनावपूर्ण कूटनीतिक संबंधों को शुक्रवार को एक बड़ा झटका लगा, जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने व्हाइट हाउस में यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोदिमिर ज़ेलेंस्की की कड़ी आलोचना की।
यह अप्रत्याशित हमला, जिसे दुनिया भर के समाचार चैनलों ने प्रसारित किया, रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के लिए एक रणनीतिक बढ़त साबित हुआ— अमेरिका से यूक्रेन को कम मदद मिलेगी और रूस की सेना को राहत मिलेगी।
यूक्रेन को अमेरिकी सहायता में कटौती
रूस के हमले की शुरुआत से ही अमेरिका ने यूक्रेन को लगभग 64 बिलियन यूरो की सैन्य सहायता दी है, जिसमें वित्तीय और मानवीय सहायता भी शामिल है।
जर्मनी के कील इंस्टीट्यूट के अनुसार, 2022 से 2024 के अंत तक अमेरिका की कुल सहायता 114.2 बिलियन यूरो ($119.8 बिलियन) तक पहुंच गई, जबकि यूरोपीय देशों का योगदान 132.3 बिलियन यूरो था।
इस घटना से कुछ दिन पहले ही अमेरिका और ट्रंप ने यूरोप से अलग रुख अपनाते हुए संयुक्त राष्ट्र के उस प्रस्ताव के खिलाफ वोट दिया, जिसमें रूस से यूक्रेन से अपनी सेना वापस बुलाने की मांग की गई थी।
इस प्रस्ताव को 93 देशों का समर्थन मिला, 18 ने विरोध किया और 65 ने मतदान से दूरी बना ली।
जो देश इसके खिलाफ थे, उनमें रूस और उसके करीबी सहयोगी उत्तर कोरिया, सीरिया, बेलारूस, निकारागुआ और अप्रत्याशित रूप से अमेरिका भी शामिल था।
इस निर्णय ने पश्चिमी देशों को चौंका दिया, जिन्होंने सोचा था कि अमेरिका हमेशा की तरह यूक्रेन की संप्रभुता के समर्थन में खड़ा रहेगा।
ज़ेलेंस्की की चिंता
पिछले तीन वर्षों से क्रेमलिन ज़ेलेंस्की को एक लापरवाह और अयोग्य नेता के रूप में पेश करता रहा है, जो अंततः अपने NATO सहयोगियों को अलग-थलग कर देगा।
व्हाइट हाउस में जो हुआ— ट्रंप ने उपराष्ट्रपति जे.डी. वांस के साथ ज़ेलेंस्की को अमेरिकी सैन्य समर्थन पर लताड़ लगाई— उससे कीव को अब अमेरिकी मदद बंद होने की आशंका सताने लगी है।
हालांकि ज़ेलेंस्की ने बाद में Fox News से बातचीत में कहा कि वह ट्रंप के साथ संबंध सुधार सकते हैं, लेकिन उन्होंने युद्ध के हालात को स्वीकार करते हुए कहा—
“रूस से लड़ना आपके समर्थन के बिना मुश्किल होगा।”
फ्रांस, ब्रिटेन और तुर्की ने यूक्रेन में अपनी सेना भेजने की इच्छा जताई है। ज़ेलेंस्की का कहना है कि कम से कम 1,00,000 सैनिकों की जरूरत होगी, हालांकि उनका सटीक उद्देश्य अभी स्पष्ट नहीं है।
मास्को ने चेतावनी दी है कि NATO की कोई भी सैन्य उपस्थिति ‘उकसावे’ के रूप में मानी जाएगी।
पुतिन की ‘मौन जीत’
व्हाइट हाउस में हुए इस टकराव को क्रेमलिन ने अपने लिए एक प्रचार जीत (Propaganda Victory) बना लिया।
रूसी मीडिया और अधिकारियों ने इसे यह साबित करने के लिए इस्तेमाल किया कि यूक्रेन की वैश्विक स्थिति कमजोर हो रही है।
हालांकि ट्रंप दावा करते हैं कि वह यूक्रेन में ‘मौत का सिलसिला’ खत्म करना चाहते हैं, पुतिन अभी भी युद्ध के ‘मूल कारणों’ को हल करने की बात कर रहे हैं।
इसका अर्थ है कि यूक्रेन को निरपेक्ष (Neutral) होना चाहिए, उसकी सेना कमजोर होनी चाहिए, और NATO के विस्तार पर रोक लगनी चाहिए।
वर्तमान में रूस यूक्रेन के लगभग 20% हिस्से पर कब्जा कर चुका है, जिसमें 2014 में अधिग्रहीत क्राइमिया भी शामिल है।
पुतिन का कहना है कि कीव को लुहान्स्क, दोनेत्स्क, ज़ापोरिज्ज़िया और खेरसॉन पर रूसी कब्जे को स्वीकार करना होगा।
दूसरी ओर, ज़ेलेंस्की अडिग हैं कि यूक्रेन की 1991 की सीमाओं को बहाल किया जाना चाहिए। हालांकि, उन्होंने संकेत दिया है कि रूस के कुर्स्क क्षेत्र के बदले कुछ भूमि समझौते पर चर्चा हो सकती है, जिसे यूक्रेनी सेना ने पिछले साल कुछ समय के लिए कब्जे में लिया था।
पुतिन ने इस प्रस्ताव को सिरे से खारिज कर दिया।
यूरोपीय देशों का रुख
व्हाइट हाउस में हुए इस टकराव से अमेरिका और उसके यूरोपीय सहयोगियों के बीच यूक्रेन को लेकर मतभेद गहरा गए हैं।
जहां ट्रंप यूक्रेन पर तत्काल युद्धविराम के लिए दबाव डाल रहे हैं, वहीं यूरोपीय देश मजबूत सुरक्षा गारंटी की मांग कर रहे हैं ताकि भविष्य में रूस फिर हमला न कर सके।
ब्रिटेन के प्रधानमंत्री कीर स्टार्मर का कहना है कि यूक्रेन को अमेरिकी सुरक्षा गारंटी जरूरी है।
लेकिन ट्रंप इसके बजाय आर्थिक व्यवस्था को प्राथमिकता दे रहे हैं।
अमेरिका ने यूक्रेन के खनिज संसाधनों में निवेश करने के लिए एक समझौते का प्रस्ताव दिया है, जिससे यूक्रेनी अर्थव्यवस्था को स्थिरता मिलेगी, लेकिन इसमें सैन्य सुरक्षा का कोई ठोस आश्वासन नहीं दिया गया है।
क्रेमलिन का लक्ष्य – पश्चिमी एकता को तोड़ना
व्हाइट हाउस में ज़ेलेंस्की को अपमानित किए जाने से रूस का एक और मकसद पूरा हो गया—पश्चिमी देशों की एकता को कमजोर करना।
रूसी सांसदों ने खुलेआम ज़ेलेंस्की का मज़ाक उड़ाया।
रूस के पूर्व राष्ट्रपति दिमित्री मेदवेदेव ने सोशल मीडिया पर उन्हें ‘बदतमीज सुअर’ कहकर अपमानित किया।
निष्कर्ष
व्हाइट हाउस की इस घटना से यूक्रेन को मिलने वाली अमेरिकी सहायता पर सवाल खड़े हो गए हैं।
यूरोपीय सहयोगी अब अपनी अलग रणनीति बना रहे हैं, लेकिन NATO की किसी भी सैन्य कार्रवाई पर रूस की धमकी बरकरार है।
अब सवाल यह है कि क्या यूक्रेन को अपने सहयोगियों का भरोसा बनाए रखने के लिए कोई नया रास्ता निकालना होगा, या यह युद्ध पश्चिमी देशों की एकता को और कमजोर कर देगा?