पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी सरकार को करारा झटका देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कलकत्ता हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखा, जिसके तहत 25,000 से अधिक शिक्षकों और गैर-शिक्षण कर्मचारियों की नियुक्ति रद्द कर दी गई। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पूरा चयन प्रक्रिया धांधली और हेरफेर से ग्रसित थी, जिससे इसकी निष्पक्षता और वैधता समाप्त हो गई।
मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति पीवी संजय कुमार की पीठ ने कहा कि हाईकोर्ट के फैसले में हस्तक्षेप करने का कोई कारण नहीं है। अदालत ने इसे धोखाधड़ी से हुई नियुक्ति करार दिया और राज्य सरकार को तीन महीने के भीतर नई चयन प्रक्रिया पूरी करने का आदेश दिया।
क्या कहा सुप्रीम कोर्ट ने?
🔹 नई भर्ती प्रक्रिया में सफल उम्मीदवारों को पुरानी सैलरी लौटाने की जरूरत नहीं होगी।
🔹 जो उम्मीदवार चयनित नहीं होंगे, उन्हें मिली हुई सैलरी वापस करनी होगी।
🔹 दिव्यांग उम्मीदवारों को विशेष छूट दी गई है, वे अपनी वर्तमान पोस्टिंग पर बने रह सकते हैं।
भर्ती घोटाले का पूरा मामला
🔹 2016 में हुई राज्य स्तरीय भर्ती परीक्षा में 23 लाख से अधिक उम्मीदवारों ने भाग लिया था।
🔹 कुल 24,640 पदों पर भर्ती होनी थी, लेकिन सरकार ने 25,753 नियुक्ति पत्र जारी कर दिए।
🔹 इन ‘अतिरिक्त’ पदों के जरिए अवैध भर्तियां की गईं।
राजनीतिक उथल-पुथल और भ्रष्टाचार के आरोप
इस भर्ती घोटाले ने तृणमूल कांग्रेस सरकार को विवादों में घेर दिया। पार्टी के कई शीर्ष नेता गिरफ्तार किए जा चुके हैं, जिनमें ममता बनर्जी के करीबी और पूर्व शिक्षा मंत्री पार्थ चटर्जी भी शामिल हैं।
बीजेपी नेता अमित मालवीय ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को ममता सरकार की करारी हार बताया। उन्होंने कहा, “पार्थ चटर्जी पहले ही जेल में हैं। ममता बनर्जी को भी इस बड़े घोटाले की जवाबदेही लेनी चाहिए और उनके खिलाफ मुकदमा चलना चाहिए।”
इस फैसले के बाद पश्चिम बंगाल में शिक्षा व्यवस्था और राजनीति में बड़ी हलचल मच गई है। 🚨