‘नो स्कूल, नो फीस’, सरकार पर टिकी अभिभावकों की उम्मीद

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झारखंड में फीस माफी को लेकर एक बार फिर आवाज उठने लगी है। लॉक डाउन के दौरान झारखंड के स्कूल, कॉलेज सहित सभी शैक्षणिक संस्थाएं बंद हैं। विद्यार्थियों की पढ़ाई लगभग ठप है। ऑनलाइन पढ़ाई की औपचारिकताएं निभाई जा रही है।

courtesy: live mint
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झारखंड में फीस माफी को लेकर एक बार फिर आवाज उठने लगी है। लॉक डाउन के दौरान झारखंड के स्कूल, कॉलेज सहित सभी शैक्षणिक संस्थाएं बंद हैं। विद्यार्थियों की पढ़ाई लगभग ठप है। ऑनलाइन पढ़ाई की औपचारिकताएं निभाई जा रही है। हालांकि स्कूल प्रबंधन फीस कम करने को तैयार नहीं है। इसके खिलाफ विभिन्न अभिभावक संगठन विरोध दर्ज कराते रहे। कई स्टेज पर ‘नो स्कूल, नो फीस’ का अभियान चलाया गया। लेकिन सरकार ने अभी तक कोई फैसला नहीं लिया है।

अभिभावक संघों द्वारा अभियान के तहत प्रधानमंत्री, केंद्रीय शिक्षा मंत्री, झारखंड के मुख्यमंत्री, शिक्षा मंत्री तक बात पहुंचाई गई है। इसके बाद भी किसी तरह का कोई फैसला नहीं लिया गया है। अभिभावक संघों की फीस और अन्य मदों में की जाने वाली बढ़ोत्तरी का विरोध मौसमी कार्यक्रम बन गया है। हर साल विभिन्न संगठनों द्वारा इसका विरोध किया जाता है। यह कवायद वर्षों से चल रही है।

लॉकडाउन के कारण फिलहाल यह विरोध सोशल मीडिया के माध्यम से हो रहा है। अभिभावकों का कहना है कि स्कूल प्रबंधन हर साल अभिभावकों से बड़ी रकम विभिन्न मदों में वसूलते हैं। नये सत्र में इसमें बढ़ोत्तरी कर दी जाती है। रि एडमिशन के तौर पर अभिभावकों से कई स्कूल हर साल हजारों रुपये ऐठते हैं। बच्चों की किताब के नाम पर भी पैसा लिये जाते हैं। कई स्कूल प्रबंधन का किताबों के प्रकाशक से सांठगांठ रहती है।

झारखंड में सीबीएसई से संबद्धता प्राप्त 620 स्कूल है। इन स्कूलों में वर्ग एक से 12वीं तक दो लाख बच्चे अध्ययन करते हैं। स्कूलों ने अभिभवकों से ट्यूशन और बस फीस लिया है। कई स्कूल प्रबंधन ने दो महीने की एकमुश्त फीस जमा कराई। बिना पढ़ाये अभिभावकों से करीब 400 करोड़ रुपये की वसूली की गई। औसतन 10 हजार रुपये विभिन्न मद में अभिभावकों से वसूले जा रहे हैं। फिलहाल सभी अभिभावकों की उम्मीद सरकार पर टिकी है।

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