राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास ने राज्य सरकार को आगाह करते हुए कहा है कि झारखंड में गरीबों, महिलाओं और युवाओं को अधिकाधिक रोजगार देने की आवश्यकता है। इसके लिए यहां ऐसे उद्योगों की स्थापना की जरूरत है, जिससे रोजगार का अधिक अवसर उत्पन्न हो सके। उन्होंने कोरोना संकट के सामाजिक एवं आर्थिक दुष्परिणाओं को रेखांकित करते हुए कहा कि अभी शुरूआत में ही सजग होने की जरूरत है ताकि भविष्य में यह संकट अधिक न गहराये।
उन्होंने हेमंत सरकार को हाथ पर हाथ धरकर नहीं बैठे रहने की सलाह देते हुए कहा कि सरकार रोजगार सृजन के लिए तेजी से काम करे क्योंकि सिर्फ बयानबाजी से संकट का समाधान नहीं होता है। जमीन पर तेजी से इस संकट से निपटने के लिए काम करना जरूरी है। बात दें कि पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास के नेतृत्व में गठित पूर्ववर्ती सरकार की विभिन्न औद्योगिक नीतियों को राज्य के व्यापक हित में बताते हुए कहा है कि इन नीतियों से अधिकाधिक रोजगार के अवसर उत्पन्न किए जा सकते हैं। देशभर से वापस आ रहे भाईयों और बहनों को रोजगार उपलब्ध कराया सकता है।
उन्होंने पूर्ववर्ती सरकार की ऐसी नीतियों की चर्चा करते हुए कहा है कि इनमें झारखंड ऑटोमोबाइल एंड कम्पोनेंट पॉलिसी 2016, झारखंड बीपीओ/बीपीएम पॉलिसी 2016, झारखंड ईएसडीएम पॉलिसी 2016, झारखंड एक्सपोर्ट पॉलिसी 2015, झारखंड फिल्म पॉलिसी 2015, झारखंड फिजिकल इंसेंटिव्स स्कीम फॉर सिटिंग अप ऑफ मेडिकल इंस्टीट्यूसंन 2016, झारखंड फूड प्रोसेसिंग इंडस्ट्री पॉलिसी 2015 एवं झारखंड फिड प्रोसेसिंग इंडस्ट्री पॉलिसी 2015 उल्लेखनीय हैं। इसके अलावा झारखंड इंडस्ट्रीयल पार्क पॉलिसी 2015, झारखंड इंडस्ट्रीयल एंड इंवेस्टमेंट प्रोमोसन पॉलिसी 2016, झारखंड आईटी/आईटीईएस पॉलिसी 2016, झारखंड टूरिज्म पॉलिसी 2015, डिफरेंट बेनिफिट्स टू एमएसएमईएस अंडर झारखंड प्रोक्यूमेंट्स पॉलिसी 2014, झारखंड स्टेट सोलर पॉवर पॉलिसी 2015 एंड झारखंड एनर्जी पॉलिसी 2012, झारखंड स्टॉर्टअप पॉलिसी 2016 और झारखंड टेक्सटाइल, अपारेल एंड फूटवेयर पॉलिसी 2016 राज्य, उद्योग एवं श्रमिक हित में हैं।
पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास ने अपने बयान में कहा है कि कोरोना संकट के चलते देश के विभिन्न हिस्सों से लाखों की संख्या में झारखंड के प्रवासी श्रमिक और गरीब लोग अपने घरों को लौट रहे हैं। यदि समय रहते उनके रोजगार और जीवकोपार्जन का इंतजाम नहीं किया गया तो राज्य में भारी संकट खड़ा हो जायेगा। राज्य के लाखों मजदूर दर-दर ठोकर खाने को मजबूर हो जायेंगे, जिससे विधि व्यवस्था पर प्रतिकूल असर पड़ेगा। स्थिति भयावह और विस्फोटक हो सकती है।