अयोध्या के रामलला मंदिर के मुख्य पुजारी आचार्य सत्येंद्र दास का 80 वर्ष की आयु में निधन हो गया। उन्होंने बुधवार सुबह 7 बजे लखनऊ के पीजीआई अस्पताल में अंतिम सांस ली। ब्रेन हेमरेज के चलते 3 फरवरी को उन्हें अयोध्या से लखनऊ रेफर किया गया था। उनका पार्थिव शरीर अयोध्या लाया जाएगा, जहां सत्य धाम गोपाल मंदिर में अंतिम दर्शन के लिए रखा जाएगा।
रामलला की सेवा का सफर
आचार्य सत्येंद्र दास 32 वर्षों तक रामजन्मभूमि में मुख्य पुजारी के रूप में सेवा देते रहे। 6 दिसंबर 1992 को बाबरी विध्वंस के दौरान, जब स्थिति तनावपूर्ण हो गई, तब वे रामलला को गोद में उठाकर सुरक्षित स्थान पर ले गए थे। उनका जीवन पूरी तरह से भक्ति और सेवा को समर्पित था।
संन्यास और शिक्षा का मार्ग
20 मई 1945 को संत कबीरनगर जिले में जन्मे सत्येंद्र दास बचपन से ही आध्यात्मिक रुचि रखते थे। उनके पिता अक्सर अयोध्या जाते थे, जिससे उनका भी राम नगरी से गहरा नाता जुड़ गया। वे महंत अभिराम दास के सानिध्य में आए, जिन्होंने 22-23 दिसंबर 1949 को राम जन्मभूमि के गर्भगृह में मूर्तियों के प्रकट होने का दावा किया था। इस घटना से प्रेरित होकर सत्येंद्र दास ने संन्यास लेने का निर्णय लिया और 1958 में घर छोड़ दिया।
संन्यास लेने के बाद उन्होंने संस्कृत की शिक्षा प्राप्त की और गुरुकुल पद्धति से अध्ययन किया। संस्कृत आचार्य बनने के बाद उन्होंने अयोध्या के संस्कृत महाविद्यालय में 1976 में व्याकरण विभाग में सहायक शिक्षक के रूप में कार्यभार संभाला। इस दौरान वे मंदिर में भी सेवा देते रहे।
पूजा-पाठ और शिक्षक जीवन का संतुलन
राम जन्मभूमि में उनकी पुजारी के रूप में शुरुआत केवल 100 रुपये मासिक वेतन से हुई थी। लेकिन अध्यापन कार्य के साथ उन्होंने पूजा-पाठ का दायित्व भी निभाया। 2007 में शिक्षक पद से सेवानिवृत्ति के बाद वे पूर्ण रूप से रामलला की सेवा में समर्पित हो गए। इस दौरान उनकी वेतन बढ़कर 13,000 रुपये हो गई थी, जबकि सहायक पुजारियों को 8,000 रुपये का वेतन मिल रहा था।
रामलला की सेवा में समर्पित जीवन
आचार्य सत्येंद्र दास ने अपना संपूर्ण जीवन राम जन्मभूमि और रामलला की सेवा में अर्पित कर दिया। उनकी भक्ति, सेवा और सादगी ने उन्हें न केवल श्रद्धालुओं के बीच बल्कि पूरे अयोध्या में एक सम्माननीय स्थान दिलाया। उनके निधन से रामलला मंदिर परिवार और श्रद्धालु समाज में शोक की लहर है।